kaam krodh lobh moh काम क्रोध लोभ मोह . kaam krodh lobh moh ahankar in hindi काम क्रोध लोभ मोह का अर्थ. काम क्रोध लोभ मोह इन हिंदी . काम, क्रोध लोभ मोह अहंकार श्लोक. मन के पांच विकार man ke panch vikar. kam krodh aur lobh se kiski prapti hoti hai . अहंकार का अर्थ और परिभाषा ahankar ka Arth aur paribhasha .
पांच विकार kaam krodh lobh moh ahankar माने जाते हैं। पंच विकार किसी भी मनुष्य को गलत रास्ते पर ले जा सकते हैं और उसका विनाश कर सकते हैं। पांच विकार के कारण बहुत सारे बड़े-बड़े ज्ञानी और विद्वान लोग आसमान से धरती पर यानी कि एकदम निचले स्तर पर आ गए थे ।
kaam krodh lobh moh काम क्रोध लोभ मोह
kaam krodh lobh moh : kaam krodh lobh moh विकास किसी भी मनुष्य के अंदर कभी भी उत्पन्न हो सकते हैं। जब किसी मनुष्य में kaam krodh lobh moh उत्पन्न होते हैं तब उसे मनुष्य का विनाश निश्चित है, यदि वह मनुष्य इन विकारों से बाहर नहीं निकलता है । kaam krodh lobh moh जैसे विकार उत्पन्न होना मनुष्य के लिए ठीक नहीं है। kaam krodh lobh moh जैसे विकार अमीर से अमीर व्यक्ति को भी रोड पर लाने में ज्यादा समय नहीं लगाते हैं।
kaam krodh lobh moh जैसे विचार रावण जैसे व्यक्ति का विनाश कर सकते है तो एक साधारण मनुष्य में इतनी क्षमता नहीं है कि वह kaam krodh lobh moh से बच सके । kaam विकार की अधिकता के कारण ही रावण का विनाश हुआ था। रावण के मन में kaam कामवासना जागृत हुई जिसके कारण रावण ने सीता का हरण किया जिसका परिणाम यह हुआ की राम ने रावण का वध कर दिया।
kaam krodh lobh moh ahankar काम क्रोध लोग मोह अहंकार
kaam krodh lobh moh ahankar : काम क्रोध लोग मोह अंहकार पांच विकार माने जाते हैं जो कि मनुष्य के अंदर कभी भी आ सकते हैं। kaam krodh lobh moh ahankar यह पांच प्रकार की ऊर्जाएं होती है जो कि मनुष्य के शरीर में होती है। यदि इन पांच ऊर्जा में से कोई भी ऊर्जा ज्यादा होती है तब इसका संतुलन बिगड़ जाता है और वह व्यक्ति विनाश की ओर चला जाता है। यदि वह व्यक्ति इसका संतुलन नहीं करता है। kaam krodh lobh moh ahankar की ऊर्जा के प्रवाह को बदला जा सकता है और इसे कम किया जा सकता है बल्कि इसे रोक नहीं जा सकता है।
मोह ( moh )
moh का मतलब होता है कि अपने से जुड़ी हुई प्रत्येक चीज से जरूर से ज्यादा लगाव करना और प्यार करना मोह कहलाता है। प्रत्येक व्यक्ति का moh अलग-अलग होता है। कुछ व्यक्ति को अपने परिवार का मोह सबसे ज्यादा होता है तो कुछ व्यक्ति को रूपए पैसे का और धन दौलत का मोह होता है। किसी व्यक्ति को अपने शरीर से moh सबसे ज्यादा होता है। अलग-अलग व्यक्ति में अलग-अलग प्रकार का moh होता है। कोई चीज यदि गलत और विनाशकारी है उसके बाद भी यदि कोई व्यक्ति उसे लगाव रखता है तो यह moh है उसे व्यक्ति का उसे वास्तु के प्रति । कई बार व्यक्ति का moh इतना ज्यादा होता है कि व्यक्ति moh में अंधा भी हो जाता है।
लोभ ( lobh )
लोभ मनुष्य के अंदर उत्पन्न होने वाला एक प्रकार का विकार है। लोभ व्यक्ति के लिए बहुत ही विनाशकारी होता है । यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु का लोभ करता है तो वह उसके लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। आवश्यकता से अधिक किसी वस्तु का संग्रह करना लोभ कहलाता है। प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग प्रकार का लोभ होता है। कुछ व्यक्ति धन का लोभी होता है तो कुछ व्यक्ति जमीन जायदाद का लोभी भी होता है। लोभ एक प्रकार का लालच ही होता है जो की उस व्यक्ति को उसके आनंद की वस्तु में अधिक लगाव उत्पन्न करता है।
क्रोध ( krodh )
कामना पूर्ति के अभाव में क्रोध उत्पन्न होता है । क्रोध पांच विकारों में से एक विकार है। क्रोध की ऊर्जा को दबाया नहीं जा सकता है बल्कि इसकी दिशा को बदला जा सकता है। व्यक्ति को अपने क्रोध पर अंकुश लगाना चाहिए और विवेक से काम लेना चाहिए। कभी कबार व्यक्ति क्रोध में बहुत कुछ बोल देता है जिसका उसे आगे जाकर के बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है। क्रोध में आकर के कभी भी कोई भी बड़े निर्णय नहीं लेने चाहिए। क्रोध व्यक्ति के लिए बहुत ही भयंकर विनाशकारी और घातक होता है । क्रोध करने वाले व्यक्ति में सोचने समझने की क्षमता खत्म हो जाती है।
यदि किसी मनुष्य का कोई काम पूरा नहीं होता है या कोई इच्छा पूरी नहीं होती है या कोई व्यक्ति उनके कहने के मुताबिक काम नहीं करता है तब उसे क्रोध आता है। क्रोध मनुष्य के विवेक को खत्म कर देता है।
काम ( kaam )
काम मनुष्य के शरीर में उत्पन्न होने वाला एक प्रकार का विकार है। काम भोग विलास की इच्छा को दर्शाता है। यदि किसी व्यक्ति में काम विकार ज्यादा है तो उसे व्यक्ति की शारीरिक जरूरतें ज्यादा होगी यानी कि ऐसा व्यक्ति शारीरिक सुख भोगने की कामना रखता है। यदि किसी व्यक्ति में कामवासना अधिक है तो वह व्यक्ति भोग विलास में रुचि अधिक रखता है और इस तरह के व्यक्ति विपरीत लिंग के प्रति ज्यादा आकर्षित होता है।
यदि महिला में काम विकार है तो महिला पुरुष की तरफ आकर्षित होगी और यदि पुरुष कामी परवर्ती का है तो वह महिला की तरफ आकर्षित होगा । इसे ही काम विकार कहा जाता है। मनुष्य काम के वशीभूत होकर के बहुत बड़े गलत निर्णय ले सकता है। कभी कबार तो मनुष्य कामवासना में इतना अंधा हो जाता है कि उसे अच्छे भले बुरी का भी ज्ञान नहीं रहता है। कामवासना के अधीन व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा इंद्रिय सुख भोगना चाहता है।
रावण ने कामवासना के वसीभूत होकर के ही सीता का हरण किया था। सीता की सुंदरता को देखकर के राम के मन में कामवासना उत्पन्न हो गई थी । रावण इस कामवासना को दबा नहीं पाया था जिसके कारण परिणाम यह हुआ कि अंत में रावण मारा गया।
अहंकार ( ahankar )
स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझना ही अहंकार होता है। यदि कोई व्यक्ति अपने आप को ही सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है तो यह उसका अहंकार है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति सर्वश्रेष्ठ और पूर्ण नहीं होता है प्रत्येक व्यक्ति में कोई ना कोई कमी या विकार जरूर होता है।
इसी तरह का अहंकार रावण को हुआ था । रावण को इस बात का अहंकार था कि तीनों लोकों में उसे कोई नहीं जीत सकता है । वह त्रिलोक विजेता है। रावण को इस बात का अंहकार था कि तीनों लोकों में उसके बराबर कोई नहीं है। रावण को इस बात का भी अंहकार था कि तीनों लोकों में ज्ञान में, बल में और पराक्रम में उसके सामने कोई नहीं टिक सकता है। इसी अहंकार के कारण रावण का विनाश हुआ था।
यदि कोई व्यक्ति अपने साथ “मैं” शब्द जोड़ने लगे और कहने लगे कि ” मैं ऐसा हूं ” ” मैं वैसा हूं ” “मैंने यह किया है ” ” मैंने वह किया है ” तो समझ जाइए कि यह बातें वह व्यक्ति नहीं बोल रहा है बल्कि उसका अहंकार बोल रहा है । अहंकार ऐसा ही होता है। अहंकारी व्यक्ति अपनी ही बड़ाई खुद करने लगता है। अहंकारी व्यक्ति का विनाश निश्चित होता है।
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lobh moh kaam krodh : lobh moh kaam krodh यह सभी विकार किसी भी व्यक्ति के लिए सही नहीं होते हैं। यदि इनमें से कोई भी विकार व्यक्ति में बढ़ जाता है तो वह व्यक्ति निश्चित ही विनाश की ओर चला जाता है। इसलिए व्यक्ति को अपने जीवन में lobh moh kaam krodh जैसे भी विकारों का संतुलन करके चलना होता है। यदि इस तरह के विकार शरीर में उत्पन्न होते हैं तब आपको इसकी दिशा को बदलना होता है और इन विकारों को सही दिशा में लगा करके इसका सदुपयोग करना होता है।
मन को वश में करके lobh moh kaam krodh जैसे विकारों को कंट्रोल में किया जा सकता है। यदि व्यक्ति के विकार संतुलित है तो व्यक्ति का जीवन भी संतुलित है। विकारों के असंतुलन से व्यक्ति के जीवन में भी असंतुलन उत्पन्न हो जाता है।
kaam krodh lobh moh in hindi काम क्रोध लोभ मोह इन हिंदी
kaam krodh lobh moh in hindi : kaam krodh lobh moh जैसे विकारों पर विजय प्राप्त करना है तब आपको अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त करना होगा । जितनी ज्यादा आपकी इच्छाएं बढ़ेगी उतने ही ज्यादा आपके विकार बढ़ते जाएंगे। यदि आपको विकारों पर विजय प्राप्त करना है तो अपनी इच्छाओं पर काबू करना होगा। kaam krodh lobh moh इन विकारों के उत्पन्न होने का कारण भी अलग-अलग होता है। प्रत्येक विकार अलग कारण से उत्पन्न होता है।
काम विकार भोग विलास की लालसा और इच्छा के कारण उत्पन्न होता है। जबकि क्रोध विकार मन के अनुसार काम पूरा नहीं होने पर उत्पन्न होता है। किसी भी चीज के प्रति आसक्ति से मोह विकार उत्पन्न होता है। किसी भी चीज को अधिक से अधिक पाने की इच्छा ही लोभ को जन्म देती है और इससे लोभ विकार का जन्म होता है। kaam krodh lobh moh यह सभी विकार हमारी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक होते हैं।
kaam krodh lobh moh ahankar in hindi काम क्रोध लोभ मोह अहंकार इन हिंदी
kaam krodh lobh moh ahankar in hindi : मन को काबू में करके, इच्छाओं को काबू में करके और इंद्रियों को काबू में करके इन पांचो विकारों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। kaam krodh lobh moh ahankar जैसे विकारों के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण ही इच्छाएं मन और इंद्रियों है।
भोग विलास की इच्छा के कारण काम विकार उत्पन्न होता है। इच्छाओं पर काबू पाकर के काम विकार पर विजय प्राप्त की जा सकती है। मन पर काबू पा करके खाने पीने की इच्छाओं पर विजय प्राप्त की जा सकती है मन और इच्छा जब कंट्रोल में होती है तब विकार उत्पन्न होना कठिन हो जाता है
काम, क्रोध लोभ मोह अहंकार श्लोक
काम क्रोध लोभ मोह अहंकार श्लोक : 1. कामः(ख्) क्रोधस्तथा लोभ:(स्), तस्मादेतत्त्रयं(न्) त्यजेत्।।
2 . कामः क्रोधस्तथा लोभस्त्रिविधं नरकस्येदं द्वारम्
अर्थ : इसका मतलब होता है कि काम क्रोध लोभ यह तीनों विकार व्यक्ति को नर्क में ले जाते हैं और व्यक्ति की मुक्ति नहीं हो पाती है। काम क्रोध लोभ इन तीनों विकारों को नर्क का दरवाजा बताया गया है।
भागवत पुराण में श्री कृष्ण ने बताया है की कामना से ही लोभ और मोह जैसे विकारों की उत्पत्ति होती है। जब किसी व्यक्ति का लोभ पूरा नहीं होता है तब व्यक्ति में क्रोध विकार की उत्पत्ति होती है। यदि किसी व्यक्ति की कामना पूरी हो जाती है वह लोभ विकार में परिवर्तित हो जाती है । लोभ विकार आगे जाकर के मोह उत्पन्न करने लगता है। जब लोभ के कारण बहुत सारा संग्रह हो जाता है तब अहंकार की उत्पत्ति होती है।
काम क्रोध मद लोभ मोह का अर्थ kam Krodh madh lohb mohe ka Arth
काम क्रोध मद लोभ मोह का अर्थ : काम का अर्थ इच्छा और वासना से है। काम का अर्थ है भोग विलास की इच्छा होना । क्रोध का अर्थ है गुस्सा । कामना की पूर्ति नहीं होने पर व्यक्ति को गुस्सा आता है। मद का अर्थ है अहंकार । किसी भी वस्तु का आवश्यकता से अधिक संग्रह अहंकार को जन्म देता है। अधिक ज्ञान की प्राप्ति पर व्यक्ति को ज्ञान का अहंकार हो जाता है और अधिक धन की प्राप्ति पर व्यक्ति को धन का अहंकार हो जाता है।
लोभ का अर्थ है लालच । अधिक लालच के कारण व्यक्ति अधिक संग्रह करता है। अधिक संग्रह के कारण उसे व्यक्ति को उस संग्रह का मोह होने लगता है। कई बार मोह अहंकार का रूप धारण कर लेता है। मोह का अर्थ है लगाव । किसी भी चीज से बहुत अधिक लगाव मोह उत्पन्न करता है। किसी व्यक्ति को धन का मोह होता है। किसी व्यक्ति को संपत्ति का मोह होता है। किसी व्यक्ति को स्त्री का मोह होता है। किसी व्यक्ति को पुत्र पुत्री का मोह होता है।
मन के पांच विकार man ke panch vikar
मन के पांच विकार : काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार यह मन के पांच विकार है। मन में इन पांच विकार में से कोई भी विकार उत्पन्न हो सकता है और फिर पांच विकार का संतुलन गड़बड़ा सकता है। मन के पांच विकार अलग-अलग कारणों से उत्पन्न होते हैं। मन के पांच विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को कंट्रोल किया जा सकता है। योग, ध्यान आदि के माध्यम से इन मन के पांच विकार को दूर भी किया जा सकता है। मन के पांच विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार व्यक्ति के जीवन में भटकाव उत्पन्न करते हैं। मन के पांच विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जब किसी व्यक्ति के दूर हो जाते हैं तब व्यक्ति विचार शून्य हो जाता है और फिर वह जन्म मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है।
kam krodh aur lobh se kiski prapti hoti hai
kam krodh aur lobh se kiski prapti hoti hai : kam krodh aur lobh se नरक की prapti hoti hai . जो व्यक्ति kam krodh aur lobh के अधीन हो जाता है वह व्यक्ति नरक में जाता है और उसकी मुक्ति नहीं हो पाती है। kam krodh aur lobh में फंसा हुआ व्यक्ति जन्म मरण के चक्कर से मुक्त नहीं हो पता है। kam krodh aur lobh में फंसा हुआ व्यक्ति 84 लाख योनियों में भटकता रहता है और उसका जन्म मृत्यु का चक्कर चलता रहता है। kam krodh aur lobh से छुटकारा पाकर के व्यक्ति जन्म मरण के चक्कर से छुटकारा पा सकता है और ईश्वर के परमधाम को प्राप्त कर सकता है। जब व्यक्ति मरता है तब उसके मन में कोई भी इच्छा और कामना नहीं होनी चाहिए अन्यथा उसकी मुक्ति नहीं हो पाती है।
अहंकार का अर्थ और परिभाषा ahankar ka Arth aur paribhasha
अहंकार की परिभाषा : अहंकार का अर्थ है ” मैं ” । यदि कोई व्यक्ति बार-बार मैं शब्द का प्रयोग करता है तो यह उसका अहंकार है। अहंकार को अभिमान, गर्व और घमंड भी कहते हैं। अंग्रेजी में अहंकार को इगो ( ego ) कहते हैं।
अहंकार की परिभाषा : अहंकार का मतलब होता है कि अपनी प्रतिभा और उपलब्धियां की तुलना करके दूसरों से अपने आप को सर्वश्रेष्ठ बताना अहंकार कहलाता है। अहंकारी व्यक्ति अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानता है और दूसरे को तुच्छ मानता है। अहंकारी व्यक्ति को इस बात का घमंड और गर्व होता है कि उसके पास बाकी के मुकाबले कई गुना ज्यादा है। अहंकारी व्यक्ति को अपनी प्रतिभा और उपलब्धियों से मोह भी होता है उन्हें हमेशा उनके खोने का डर रहता है।